जिस के लहू में लोथ हमारा जनम हुआ
आज कहते हैं के वह तेरी माँ नहीं है
तुम हो नाजायज़, बाबर की औलाद
नालायक, नापसंद, बेइमान
क्या टोपी, क्या पगड, क्या हिजाब, क्या सारी का पल्लू इन्सान की पहचान इतनी ओछी? क्या मंदिर, मस्जिद, गिरिजा, गुरुद्वारा है नहीं उस मालिक के दरबार? हम फिर मिट के कट के दें अपना इम्तिहान?
सीने में जो धड़कता है दिल पल पल साँसें यही गवाह दें इसी मिट्टी पर जनम लिया है इसी मिट्टी मिल जाएँगे फिर हुकुमरान, विद्वान, आएँगे, जाएँगे छीन नहीं पाएँगे हमारे वजूद और पहचान
क्या टोपी, क्या पगड, क्या हिजाब, क्या सारी का पल्लू इन्सान की पहचान इतनी ओछी? क्या मंदिर, मस्जिद, गिरिजा, गुरुद्वारा है नहीं उस मालिक के दरबार? हम फिर मिट के कट के दें अपना इम्तिहान?
सीने में जो धड़कता है दिल पल पल साँसें यही गवाह दें इसी मिट्टी पर जनम लिया है इसी मिट्टी मिल जाएँगे फिर हुकुमरान, विद्वान, आएँगे, जाएँगे छीन नहीं पाएँगे हमारे वजूद और पहचान
1 comment:
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